Arya P.G. College, Panipat

आर्य कॉलेज में हुआ पोस्ट-कलोनिअलिजम्: इंडिया एंड द वर्ल्ड विषय पर एक दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन


Image

सोमवार को पानीपत के आर्य कॉलेज के अंग्रेजी विभाग व उच्चतर शिक्षा निदेशालय, हरियाणा के संयुक्त तत्वावधान में पोस्ट-कलोनिअलिजम्: इंडिया एंड द वर्ल्ड विषय पर एक दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन करवाया गया। कॉन्फ्रेंस में हरियाणा के साथ पंजाब, दिल्ली, चंडीगढ़ व राजस्थान के लगभग 125 शोधार्थियों ने भाग लिया। कॉन्फ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर शाहबाद के मारकंडेश्वर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अशोक चौधरी ने शिरकत की। वहीं मुख्य वक्ताओं के तौर पर डिपाटमेंट ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस, आईआईटी रुड़की से प्रो. नगेंद्र, दिल्ली यूनिवर्सिटी दयाल सिंह कॉलेज के अंग्रेजी विभाग के एसोसिएट प्रो. सचिन निर्मल नारायण और दयाल सिंह कॉलेज दिल्ली से ही एसोसिएट प्रो. दिनेश पंवार ने मुख्य वक्ताओं के रूप में शिरकत की। आर्य कॉलेज प्रबंधक समिति के वरिष्ठ सदस्य विरेंद्र शिंगला व कॉलेज प्राचार्य डॉ. जगदीश गुप्ता ने मुख्य अतिथि व वक्ताओं के साथ-साथ शोधार्थियों समेत सभी का कॉलेज प्रांगण में पहुचने पर स्वागत किया। और साथ ही उन्होंने कॉन्फ्रेंस के सफल आयोजन के लिए कॉलेज के अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष व कॉन्फ्रेंस की समन्वयक डॉ. अनुराधा सिंह, कॉन्फ्रेंस की आयोजन सचिव डॉ. मीनल तालस, डॉ. सोनिया सोनी समेत सभी स्टाफ सदस्यों को बधाई दी।

कॉलेज प्राचार्य डॉ. जगदीश गुप्ता ने कहा की अंग्रेजी साहित्य की भाषा तो है ही यह विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा भी है। भारतीयों ने, अंग्रेजी भाषा में भी दक्षता प्राप्त कर, उतकृष्ट लेखन किया है। ऐसे कुछ नाम है रविंद्र नाथ टैगोर, महर्षि अरविंद, मुल्क राज आनंद, राजा राव, आर.के.नारायण, महात्मा गांधी.क.गाँधी, सलमान रश्दी, अनिता देसाई, विक्रम सेठ, अमिताभ घोष, खुशवंत सिंह, शशि थुरुर, अनीता नायर, वी.एस.नायपॉल, अश्विन संघी, चेतन भगत, अमीष, देवदत्त पटनायक।

मुख्य अतिथि  डॉ. अशोक चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि अंग्रेजी भाषा 1,400 से अधिक वर्षों के दौरान विकसित हुई है। अंग्रेजी के शुरुआती रूपों, पांचवीं शताब्दी में एंग्लो-सेक्सन बसने वालों द्वारा ग्रेट ब्रिटेन में लाई गई एंग्लो-पश्चिमी बोलियों के एक सेट को पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है। कवि और नाटककार विलियम शेक्सपियर (1564 - 1616) को व्यापक रूप से अंग्रेजी भाषा में सबसे महान लेखक और दुनिया के महान नाटककारों में से एक माना जाता है। उनके नाटकों को हर प्रमुख जीवित भाषा में अनुवादित किया गया है और किसी भी अन्य नाटककार की तुलना में अधिक बार प्रदर्शन किया जाता है।  प्रो. नगेंद्र ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे-जैसे हमारे चारों ओर की दुनिया बदलती है, वैसे ही हम दुनिया को देखते हैं, और उस दृष्टि को व्यक्त करते हैं। साहित्य, कला और दर्शन उनके ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ को दर्पण करने के लिए विकसित होते हैं। उन्होंने बताया की स्वतंत्रता के कुछ समय बाद तक के साहित्यकारों पर उपनिवेशवाद का असर था पर 80 के दशक के बाद साहित्यकार किसी भी प्रकार के प्रभाव में नहीं थे वे स्वतंत्र होकर साहित्य लिख रहे थे। आधुनिक अंग्रेजी उपन्यासों में औपनिवेशिक शक्तियों का प्रतिरोध 1950 से 1980 खूब हुआ है। प्रो. सचिन निर्मल नारायण ने बताया कि साहित्य की आधारशिला समाज है। समाज की गहराई में जाकर वहां की असंगतियों को पाठकों तक पहुंचाकर उसकी अंत:चेतना को जगाने का कार्य साहित्यकार करता है। समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले इस साहित्य में साहित्यकार समाज के प्रति प्रतिबद्धता एवं दूरदर्शिता बनाए रखते हैं। आधुनिक अंग्रेजी उपन्यास इन सभी विविधताओं को अपने में समेट कर पाठकों से सार्थक संवाद करते हैं। प्रो. दिनेश पंवार  ने बताया कि जहां दमन है वहां विद्रोह भी होता है, साहित्य में इसकी स्पष्ट झलक है। यह विद्रोह उपनिवेशवादी शक्तियों के खिलाफ भी हुआ है। स्वतंत्रता पूर्व एवं बाद के अंग्रेजी उपन्यासों में हम इसी विद्रोह भावना को देख सकते हैं। आधुनिक अंग्रेजी उपन्यासों में उपनिवेशवाद के विरोध का प्रतिरोध बखूबी ढंग से हुआ है। अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अनुराधा सिंह ने कॉन्फ्रेंस में आए हुए अतिथियों, वक्ताओं व शोधार्थियों का आभार वयक्त किया और कहा कि आज की ये कॉन्फ्रेंस शोधार्थियों के साथ-साथ एम.ए अंग्रेजी कर रहे विद्या र्थियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी। इस अवसर पर डॉ. विजय सिंह, डॉ. अकरम खान, प्राध्यापिका सुधि, ज्योति, नेहा, श्रुति अग्रवाल समेत सभी स्टाफ सदस्य मौजूद रहे।