महिला सशक्तिकरण विषय पर हुआ विस्तार व्याख्यान का आयोजन
आर्य कॉलेज की महिला सैल इकाई व अमर उजाला के संयुक्त तत्वावधान में महिला सशक्तिकरण विषय पर विस्तार व्याख्यान का आयोजन करवाया गया। आयोजन में कॉलेज के सभी संकाय के विद्यार्थियों ने भाग लिया। प्राचार्य डॉ. जगदीश गुप्ता ने अपने संदेश में कहा कि महिला सशक्तिकरण शब्द का प्रयोग समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और सभी मौजूदा लिंग भेदों को कम करने के लिए उठाए गए कदमों को इंगित करने के लिए किया जाता है। व्यापक अर्थ में, इसमें कई नीतिगत उपाय करके महिलाओं का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण शामिल है।
कॉलेज की महिला सेल की प्रभारी डॉ. मीनल तालस ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा कहे गए प्रसिद्ध वाक्य पर प्रकाश डालते हुए बताया बताया कि लोगों को जगाने के लिये, महिलाओं का जागृत होना जरूरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरूरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वेश्यावृत्ति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय। उन्होंने कहा की कॉलेज में पढने वाली सभी छात्राओं को अपने अधिकारों के विषय में अवश्य पता होना चाहिए और साथ ही समाज में होने वाले गलत व्यवहार के प्रति सजग हो कर लडना भी चाहिए व और महिलाओं को भी जागरूक करना चाहिए।
इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विजय सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में लड़कियों का शिक्षित होना बहुत जरूरी है,अगर लड़कियां शिक्षित नहीं होंगी तो वो अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं हो पाएंगी। डॉ. विजय सिंह ने सावित्री बाई फुले के बारे में बताया कि कैसे एक दलित महिला होते हुए महिलाओं के लिए कितना लंबा संघर्ष करके शिक्षा की अलख जगा कर महिलाओं को शिक्षित करने का काम किया।सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका भी थी। सावित्रीबाई फुले शिक्षक होने के साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री भी थी। इन्हें बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के ठेकेदारों से पत्थर भी खाने पड़े थे।
जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दिनेश गाहल्याण ने कहा कि महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य महिला को शक्तिशाली बनाकर उन्हें स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनाना है। वर्षों से पुरुषों के हाथों महिलाओं को बहुत कष्ट सहना पड़ा है। पिछली शताब्दियों में, उन्हें लगभग अस्तित्वहीन माना जाता था। मानो सभी अधिकार पुरुषों के हों, यहाँ तक कि मतदान जैसी बुनियादी चीज़ भी। जैसे-जैसे समय विकसित हुआ, महिलाओं को अपनी शक्ति का एहसास हुआ। यहीं से महिला सशक्तिकरण की क्रांति शुरू हुई।
मनोविज्ञान विभाग की प्राध्यापिका खुशबू ने बताया कि महिला सशक्तिकरण शब्द का प्रयोग समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और सभी मौजूदा लिंग भेदों को कम करने के लिए उठाए गए कदमों को इंगित करने के लिए किया जाता है। व्यापक अर्थ में, इसमें कई नीतिगत उपाय करके महिलाओं का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण शामिल है। बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा और यह सुनिश्चित करना कि उनमें से प्रत्येक को स्कूल भेजा जाए , महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। एक शिक्षित महिला अपनी जरूरतों के साथ-साथ अपने परिवार की जरूरतों का भी अच्छे से ख्याल रख सकती है। इस अवसर पर डॉ. राजेश टूर्ण, प्रो. अंकुर मित्तल, प्राध्यापिका प्रियांशा समेत अन्य स्टाफ सदस्य मौजूद रहे।